वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा का विस्तार 337.5 अंशों से 22.5 अंशों तक होता है। अर्थात उत्तर दिशा से भूभाग-भूखण्ड की माप आरंभ होती है और यहीं आकर समाप्त होती है। धनाधीश भगवान कुबेर का इस दिशा पर आधिपत्य है। उत्तर दिशा में धन तिजौरी रखने का स्थान, स्नानागृह, पानी का नल, बोरिंग,अण्डरग्राऊंड जल संग्रहण,हल्का निर्माण,हल्का सामान रखना शुभ होता है। इस दिशा को सदैव खुला,खाली व हल्का रखना चाहिए।
जिन व्यक्तियों के भवन की यह दिशा उपरोक्त नियमों के अंतर्गत आती है वे सम्पन्न एवं समृद्धि का जीवन बिताते हैं। उस घर में महिलाओं का सम्मान होता है। यदि यह दिशा दोषयुक्त है तो उस घर में धन-संपत्ति का अभाव बना रहता है। महिला सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता है। उत्तर दिशा में रखा हुआ धन निरंतर बढ़ता है। आफिस में कम्प्यूटर एकाउंटेंट्स-मार्केटिंग स्टाफ को इस दिशा में बैठाने से आफिस एवं कम्पनी में प्रगति होती है। वास्तु के अनुसार इन नियमोां का पालन करने से घर में समृद्धि बनी रहती हैैै।